Monday, September 17, 2018

ग़ज़ल ~ अनुज अब्र



नदी में चाँद-सा उतरा हुआ हूँ
मैं उसकी आँख में ठहरा हुआ हूँ

खनक हीरों की हो तुमको मुबारक़
मैं इनके शोर से बहरा हुआ हूँ

नक़ाबें नोंच कर सब फेंक दी हैं
बमुश्किल अब मैं इक चेहरा हुआ हूँ

खुरचने से नहीं उतरेगा ये रंग
तेरी उम्मीद से गहरा हुआ हूँ

गुलों की साजिशों का है नतीजा
कभी ज़रखेज़ था, सहरा हुआ हूँ

इकट्ठे हो गये सब मेरे दुश्मन
मैं जिन-जिन के लिये ख़तरा हुआ हूँ

~ अनुज अब्र

5 comments:

  1. अनुज भाई की बेह्तरीन ग़ज़ल। मेरी पसंदीदा भी। सभी शेर एक से पढ़कर एक हैं।

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  2. बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही अनुज सर ने।बधाई आपको।💐💐💐
    साथ ही अमन चांदपुरी साब को शुक्रिया इस सराहनीय कदम के लिए।👌👌👌👌

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  3. बहुत शानदार ग़ज़ल है।
    ख़ास तौर से हीरे वाला शे'र।
    बहुत बहुत बधाई।

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  4. हर शेर लाजवाब।वाह्हह।बधाई आपको अनुजजी।

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गीत ~ चंद्रेश शेखर

तुम नदी के उस किनारे और मैं इस पार बैठा यूँ हमारे बीच कोई खास तो दूरी नहीं है तैरना भी जानता हूँ, ये भी मज़बूरी नहीं है नाव है, पतव...