नदी में चाँद-सा उतरा हुआ हूँ
मैं उसकी आँख में ठहरा हुआ हूँ
खनक हीरों की हो तुमको मुबारक़
मैं इनके शोर से बहरा हुआ हूँ
नक़ाबें नोंच कर सब फेंक दी हैं
बमुश्किल अब मैं इक चेहरा हुआ हूँ
खुरचने से नहीं उतरेगा ये रंग
तेरी उम्मीद से गहरा हुआ हूँ
गुलों की साजिशों का है नतीजा
कभी ज़रखेज़ था, सहरा हुआ हूँ
इकट्ठे हो गये सब मेरे दुश्मन
मैं जिन-जिन के लिये ख़तरा हुआ हूँ
अनुज भाई की बेह्तरीन ग़ज़ल। मेरी पसंदीदा भी। सभी शेर एक से पढ़कर एक हैं।
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही अनुज सर ने।बधाई आपको।💐💐💐
ReplyDeleteसाथ ही अमन चांदपुरी साब को शुक्रिया इस सराहनीय कदम के लिए।👌👌👌👌
अनिल मानव
Deleteबहुत शानदार ग़ज़ल है।
ReplyDeleteख़ास तौर से हीरे वाला शे'र।
बहुत बहुत बधाई।
हर शेर लाजवाब।वाह्हह।बधाई आपको अनुजजी।
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