Sunday, September 16, 2018

साँझ के बादल - धर्मवीर भारती


ये अनजान नदी की नावें
जादू के-से पाल
उड़ाती
आती
मंथर चाल।

नीलम पर किरनों
की साँझी
एक न डोरी
एक न माँझी
फिर भी लाद निरंतर लाती
सेंदुर और प्रवाल।

कुछ समीप की
कुछ सुदूर की
कुछ चन्दन की
कुछ कपूर की
कुछ में गेरू, कुछ में रेशम
कुछ में केवल जाल।

ये अनजान नदी की नावें
जादू के-से पाल
उड़ाती
आती
मंथर चाल।

~ धर्मवीर भारती

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